एक बार आयुर्वेद को भी आजमा लें फाइब्रोइड में

एक बार आयुर्वेद को भी आजमा लें फाइब्रोइड में

सेहतराग टीम

भारत ही नहीं दुनिया की महिलाओं के लिए फाइब्रोइड या फाइब्रोसिस बेहद परेशान करने वाली बीमारी है। ये बीमारी हद से बढ़ जाए तो सिर्फ ऑपरेशन से ही इसका इलाज होता है। एलोपैथी के चिकित्‍सक आमतौर पर इसके लिए सर्जरी करवाने के लिए ही मरीजों को प्रेरित करते हैं। मुश्किल ये है कि ऑपरेशन से तत्‍काल तो बीमारी ठीक हो जाती है मगर इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि बाद में फ‍िर ये बीमारी नहीं हो जाएगी। ऐसे में आयुर्वेद के जरिये इसके इलाज का भी विकल्‍प मरीजों को आजमाना चाहिए। खासकर बीमारी की शुरुआत में आयुर्वेद के जरिये इसपर नियंत्रण का दावा कई आयुर्वेदिक चिकित्‍सक करते हैं।

क्‍या है फाइब्रोइड

नोएडा स्थित आरोग्‍य सदनम के आयुर्वेदाचार्य अच्‍युत कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि महिलाओं के गर्भाशय या कहें यूट्रस की दीवारों पर छोटी-छोटी गांठें उत्‍पन्‍न होती हैं जो शुरुआत में तो सरसों दाने जितनी होती है मगर बाद में बढ़कर मटर के दाने या फि‍र उससे भी बड़ी हो जाती है। जबतक यह सरसों के दाने जितनी रहती है तब तक महिलाओं को कोई खास परेशानी नहीं होती है और न ही यह खतरनाक होती है मगर बड़ी हो जाने पर यह गांठें अत्‍यधिक रक्‍तस्राव, जल्‍दी-जल्‍दी माहवारी, लंबे समय तक माहवारी, शरीर में खून की कमी आदि का कारण बन जाती हैं। सरसों के दाने के बराबर रहने के समय ही अगर खान-पान को नियंत्रित किया जाए और जीवनशैली सुधारी जाए तो बीमारी काबू में रह सकती है मगर अकसर ऐसा नहीं होता।

बीमारी का कारण

वैद्य अच्‍युत त्रिपाठी कहते हैं कि गर्भाशय ग्रंथी यानी फाइब्रोइड यूं तो 40 से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं में ज्‍यादा होता है मगर अब 25 वर्ष की उम्र की युवतियां भी इसका शिकार होने लगी हैं। इसके कारणों में प्रमुख है बार-बार मासिक धर्म की प्रक्रिया को प्रभावित करना, बार-बार गर्भपात, गर्भ निरोधक गोलियों का अत्‍यधिक सेवन, कम उम्र में विवाह, कम उम्र में गर्भधारण, हार्मोन से संबंधित दवाओं का ज्‍यादा सेवन और खान पान का अनियमित रहना। इसके अलावा तंबाकू, पान, जर्दा, मांस-मछली-अंडा आदि का सेवन भी इसका कारण माना जाता है। आयुर्वेद में माना जाता है कि वात एवं पित्‍त दोष प्रकुपित होकर मांस और रक्‍त को दूषित करते हैं जिससे छोटी-छोटी गांठों की उत्‍पत्ति होती है। ये गाठें कड़ी होती हैं।

लक्षण

मासिक स्राव के समय महिलाओं को तेज दर्द, अत्‍यधिक रक्‍तस्राव, माहवारी लंबे समय तक होते रहना और माहवारी कम अंतराल में ही हो जाना आदि इस समस्‍या के लक्षण होते हैं।

इलाज

आयुर्वेद में फाइब्रोइड का इलाज शुरुआती अवस्‍था यानी जब तक ये गांठें सरसों के दाने के बराबर से लेकर मटर के दाने तक होती हैं तब तक किया जा सकता है। इसलिए ये ध्‍यान रखें कि बीमारी की शुरुआती अवस्‍था में मासिक धर्म के समय गर्भाशय के आस-पास का हिस्‍सा पूरी तरह साफ रखें। उस समय संयमित जीवन का पालन करें। एसिडीटी, गैस, कब्‍ज का आदि न हो इसका ध्‍यान रखें। इसके अलावा 10 से 15 ग्राम गाय का घी गाय के दूध में डालकर या दाल में मिलाकर खाएं।

इसके अलावा मासिक धर्म के समय रक्‍तस्राव अधिक होने पर कुशल आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देखरेख में भोजन के बाद उशीरासव 15 एमएल, लोध्रासव 15 एमएल के साथ सुबह और रात में बोलवद्धारस, कामदुग्‍धारस, कहरवापिष्‍टी, प्रवालपिष्‍टी और मुक्‍तापिष्‍टी शहर के साथ लें। मासिक धर्म में रक्‍तस्राव रुक जाने के बाद चंद्रप्रभावटी, कंचनार गुगलू, त्रिफला गुगलू, पुनर्नवामंडूर, यवक्षार, प्रवाल पंचामृत गुनगुने पानी के साथ लें। भोजन के बाद कुमारी आसव, पत्रांगासव और महाशंखवटी का प्रयोग करें।

कब्‍ज और गैस से बचने के लिए 25 एमएल एरंड का तेल सप्‍ताह में एक बार दूध के साथ सेवन करें। रोज सुबह में गुनगुने पानी के साथ नींबू और शहद का प्रयोग करें और रात में दूध के साथ मुनक्‍के का प्रयोग करें।

खान-पान

आयुर्वेदिक उपचार में खान-पान का ध्‍यान रखना जरूरी है। इसलिए इस बीमारी के इलाज के दौरान मूंग, मसूर, अरहर की दाल, गेहूं की रोटी, दलिया, गाय का दूध, लौकी , परवल, तोरई, मेथी, पालक, बथुआ, चौलाई आदि का प्रयोग करें। फलों में पपीता, अनार, चीकू, अंगूर आदि ले सकते हैं। तेल, मसाला, तली-भुनी चीजों का प्रयोग वर्जित है।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।